शेयर मार्केट में डेरिवेटिव्स क्या होते हैंऔर कितने प्रकार के होते है यह कैसे काम करते है? उदाहरण के साथ
शेयर मार्केट में डेरिवेटिव्स क्या होते हैं?
डेरिवेटिव्स (Derivatives) वित्तीय उपकरण होते हैं, जिनकी कीमत किसी अन्य बुनियादी संपत्ति (Underlying Asset) की कीमत पर निर्भर करती है। शेयर मार्केट में डेरिवेटिव्स का उपयोग मुख्यतः जोखिम से बचाव (Hedging), भविष्य की कीमतों का अनुमान लगाने (Speculation), और मुनाफा कमाने के लिए किया जाता है। डेरिवेटिव्स का मुख्य उद्देश्य किसी संपत्ति के मूल्य के उतार-चढ़ाव से लाभ उठाना है, चाहे वह किसी स्टॉक, बांड, कमोडिटी, या मुद्रा की कीमत हो।
डेरिवेटिव का मतलब है एक ऐसी चीज जो किसी अन्य चीज से आई हो यानी किसी और चीज पर आधारित हो. और डेरिवेटिव जिस चीज पर डिपेंड होता है उसे हम underlying asset या सिर्फ अंडरलाइंग कहते हैं.
हर डेरिवेटिव का प्राइस उसके underlying asset पर डिपेंड करता है. मतलब underlying asset का प्राइस बढ़ने पर डेरिवेटिव का भी प्राइस बढ़ेगा और underlying asset का प्राइस गिरने पर डेरिवेटिव का प्राइस भी गिरने लगेगा।
डेरिवेटिव का उदाहरण (Example of Derivative in Hindi)
हम जानते हैं कि चिप्स हमें potato यानी आलू से मिलती है तो हम कह सकते हैं कि जो चिप्स है वह Potato यानी आलू की डेरिवेटिव है।
और जो आलू है वह चिप्स का underlying asset है.
तो जब आलू की प्राइस बढ़ती है तो मार्केट में चिप्स के दाम भी बढ़ जाते हैं और जब आलू की प्राइस घटती है तो मार्केट में चिप्स के दाम भी कम हो जाते हैं।
ठीक इसी तरह शेयर मार्केट में फाइनेंशियल डेरिवेटिव्स होते हैं जिनके underlying asset कि अगर बात करें तो वह stocks, index, currencies और commodities होते हैं।
और जब इन सभी अंडरलाइंग एसेट की प्राइस चेंज होती है तो उसके साथ इन पर आधारित डेरिवेटिव्स की प्राइस भी चेंज हो जाती है।
डेरिवेटिव्स का मुख्य उद्देश्य:
हेजिंग (Hedging):
डेरिवेटिव्स के प्रकार:
1. फ्यूचर्स (Futures)
2. ऑप्शंस (Options)
3. स्वैप्स (Swaps)
4. फॉरवर्ड (Forwards)
डेरिवेटिव ट्रेडिंग क्या होती है (Derivative trading in Hindi)
उदाहरण के लिए; अगर आप HDFC शेयर को buy ना करके HDFC के Future को buy करें तो हम कह सकते हैं कि हमने HDFC में फ्यूचर ट्रेडिंग की है।
इसी प्रकार अगर आप HDFC शेयर को buy ना करके HDFC के Option को buy करें तो आप कह सकते हैं कि आपने HDFC में ऑप्शन ट्रेडिंग की है।
उदाहरण: फ्यूचर्स ट्रेडिंग (Futures Trading)
मान लीजिए, आप सोने की कीमतों में बदलाव से मुनाफा कमाने का सोच रहे हैं।
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (Futures Contract):
एक निवेशक सोने के फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में निवेश करता है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट एक समझौता है जिसमें खरीदार और विक्रेता यह तय करते हैं कि भविष्य में एक निश्चित तारीख पर, एक निश्चित मूल्य पर एक संपत्ति (जैसे सोना) का आदान-प्रदान होगा।सीनारियो:
- वर्तमान स्थिति: सोने की कीमत ₹50,000 प्रति 10 ग्राम है।
- एक निवेशक मानता है कि 3 महीने बाद सोने की कीमत ₹55,000 प्रति 10 ग्राम हो जाएगी।
- वह एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदता है, जिसमें वह 3 महीने बाद सोने को ₹50,000 प्रति 10 ग्राम के हिसाब से खरीदने का अधिकार प्राप्त करता है।
मूल्य परिवर्तन:
- अगर सोने की कीमत ₹55,000 प्रति 10 ग्राम हो जाती है, तो निवेशक उस कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग करके ₹50,000 प्रति 10 ग्राम के हिसाब से सोना खरीद सकता है और उसे ₹55,000 में बेच सकता है। इस प्रकार, निवेशक को ₹5,000 का मुनाफा होगा।
- अगर सोने की कीमत ₹45,000 प्रति 10 ग्राम हो जाती है, तो निवेशक को ₹50,000 प्रति 10 ग्राम के हिसाब से सोना खरीदना पड़ेगा, जबकि बाजार में कीमत कम है। इस स्थिति में उसे ₹5,000 का नुकसान होगा।
यहां, फ्यूचर्स ट्रेडिंग का उदाहरण देखा गया है, जो इस बात पर आधारित था कि एक निवेशक ने सोने के मूल्य में भविष्य में होने वाले उतार-चढ़ाव से लाभ कमाने के लिए एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में निवेश किया था।
उदाहरण 2: ऑप्शंस ट्रेडिंग (Options Trading)
कॉल ऑप्शन (Call Option):
- मान लीजिए कि एक निवेशक XYZ कंपनी के स्टॉक्स पर कॉल ऑप्शन खरीदता है। इसका मतलब है कि उसे एक निर्धारित मूल्य (strike price) पर, एक विशेष तारीख तक (expiry date) उस स्टॉक को खरीदने का अधिकार मिलता है, लेकिन वह इसे खरीदने के लिए बाध्य नहीं होता।
सीनारियो:
- XYZ कंपनी का स्टॉक वर्तमान में ₹100 का है।
- एक निवेशक कॉल ऑप्शन खरीदता है, जिसका स्ट्राइक प्राइस ₹110 है और समाप्ति तिथि 1 महीने बाद है।
- यदि एक महीने बाद XYZ कंपनी का स्टॉक ₹120 हो जाता है, तो निवेशक इस ऑप्शन का उपयोग कर ₹110 पर स्टॉक खरीद सकता है और उसे ₹120 में बेचकर ₹10 प्रति शेयर का मुनाफा कमा सकता है।
- अगर XYZ स्टॉक की कीमत ₹110 से नीचे जाती है, तो वह ऑप्शन का उपयोग नहीं करेगा और केवल प्रीमियम (जो उसने ऑप्शन खरीदने के लिए भुगतान किया था) खो देगा।
कॉल ऑप्शन का लाभ:
इस उदाहरण में, कॉल ऑप्शन का उपयोग निवेशक ने स्टॉक के मूल्य बढ़ने पर मुनाफा कमाने के लिए किया है। यदि कीमत बढ़ी, तो उसे लाभ हुआ, और अगर कीमत गिरती है, तो नुकसान केवल ऑप्शन के प्रीमियम तक सीमित रहेगा।